जीवत्पुत्र व्रत (Jivitputra Vrat) का उल्लेख प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों में पाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से माताएं अपने पुत्रों की दीर्घायु और कल्याण के लिए करती हैं। इसके अंतर्गत पूजा, कथा और व्रत का विधान होता है। जीवत्पुत्र व्रत के बारे में पूरी जानकारी नीचे दी गई है:
इस वर्ष 2024 में यह व्रत 25 सितंबर, दिन बुधवार को मनाया जायेगा.
अष्टमी तिथि की शुरुवात | 24 सितंबर को 12:38 pm से |
अष्टमी तिथि की खत्म | 25 सितंबर को 12:10 pm तक |
Table of Contents
जीवत्पुत्र व्रत कथा: Jivitputra Vrat Katha
जीवत्पुत्र व्रत कथा Jivitputra Vrat Katha महाभारत काल से जुड़ी हुई हैं. महाभारत युद्ध के बाद अपने पिता की मृत्यु के बाद अश्व्थामा बहुत ही नाराज था और उसके अन्दर बदले की भावना तीव्र थी, जिस कारण उसने पांडवो के शिविर में घुस कर सोते हुए पांच लोगो को पांडव समझकर मार डाला था, लेकिन वे सभी द्रोपदी की पांच संताने थी. उसके इस अपराध के कारण उसे अर्जुन ने बंदी बना लिया। जिसके फलस्वरूप अश्व्थामा ने उत्तरा की अजन्मी संतान को गर्भ में मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया, जिसे निष्फल करना नामुमकिन था. उत्तरा की संतान का जन्म लेना जरुरी था, जिस कारण भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में ही पुनः जीवित किया. गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उसका नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा और आगे जाकर यही राजा परीक्षित बना. तब ही से इस व्रत को जीवत्पुत्र व्रत मनाया जाता हैं।
जीवत्पुत्र व्रत पूजा विधि Jivitputra Vrat Puja Vidhi:
- व्रत का संकल्प: प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
- पूजा का स्थान: भगवान शिव, माता पार्वती और बाल गोपाल की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
- पूजन सामग्री: पूजा में जल, चंदन, धूप, दीप, रोली, फल, फूल और मिठाई का उपयोग करें।
- कथा का श्रवण: पूजा के दौरान जीवत्पुत्र व्रत कथा का श्रवण करें या स्वयं पढ़ें।
- आरती और प्रसाद: पूजा के अंत में आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
Santan Saptami Vrat Katha संतान सप्तमी व्रत कथा का विशेष महत्त्व
जीवत्पुत्र व्रत (Jivitputra Vrat) का महत्व:
यह व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और उसकी सुरक्षा के लिए करती हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से पुत्र दीर्घायु होता है और उसे जीवन में सुख-समृद्धि मिलती है। यह व्रत भारतीय संस्कृति में संतान की सुरक्षा के लिए किया जाने वाला महत्वपूर्ण व्रत है।
यह व्रत विशेष रूप से उत्तर भारत में बहुत प्रचलित है और इसे श्रावण शुक्ल षष्ठी के दिन किया जाता है।